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10.5.19

मार्ग... (1)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन,परमेश्वर का कार्य,परमेश्वर की इच्छा,परमेश्वर को जानना

मार्ग... (1)

अपने जीवनकाल में कोई भी व्यक्ति नहीं जानता है कि वह किस तरह की बाधाओं का सामना करने जा रहा है, न ही उसे पता होता है कि वह किस प्रकार के शुद्धिकरण के अधीन होगा। कुछ के लिए यह उनके काम में है, कुछ के लिए यह उनके भविष्य की संभावनाओं में है, कुछ के लिए यह उनके मूल परिवार में है, और कुछ के लिए यह उनके विवाह में है। लेकिन उनमें जो भिन्न है वह है कि आज हम, लोगों का यह समूह, परमेश्वर के वचन के लिए पीड़ित हैं। अर्थात्, जैसे कि कोई जो परमेश्वर की सेवा करता हो, हमने उसमें विश्वास करने के मार्ग पर बाधा का सामना किया हो, और यही वह रास्ता है जो सभी विश्वासी लेते हैं और यह हम सभी के पैरों के नीचे की राह है। यह इसी बिंदु से है कि हम परमेश्वर पर विश्वास करने के अपने मार्ग को आधिकारिक रूप से आरंभ करते हैं, मनुष्य के रूप में अपने जीवन पर से पर्दा उठाते हैं, और जीवन के सही मार्ग पर प्रवेश करते हैं।

5.5.19

अध्याय 63



अपनी स्थितियों को समझो, और इससे भी अधिक, जिस मार्ग पर तुम्हें चलने की आवश्यकता है उसके बारे में स्पष्ट रहो; यह प्रतीक्षा न करो कि मैं तुम्हें कान से पकड़कर उठाऊं और चीज़ों की ओर इशारा करूं। मैं वह परमेश्वर हूं जो मनुष्य के सबसे भीतरी दिल को देखता है और मुझे तुम्हारी सभी सोच और तुम्हारे सारे विचार पता हैं, और उससे भी अधिक मैं तुम्हारे कार्यों और व्यवहार को समझता हूं। लेकिन क्या तुम्हारे कार्य और व्यवहार में मेरा वादा है? क्या उसमें मेरी इच्छा है? क्या तुमने वास्तव में यह खोजा है? क्या तुमने वास्तव में इस संबंध में कोई भी समय बिताया है?

एक सामान्य अवस्था में प्रवेश कैसे करें

परमेश्वर के वचनों के प्रति लोग जितने अधिक ग्रहणशील होते हैं, वे उतने ही अधिक प्रबुद्ध हो जाते हैं और परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करने के लिए उन्हें उतनी ही अधिक भूख और प्यास होती है। केवल उनको जो परमेश्वर के वचनों को पाते हैं, अधिक गहरे और समृद्ध अनुभव प्राप्त होते हैं; केवल वे ही हैं जिनके जीवन अधिक से अधिक फलते-फूलते हैं। हर कोई जो जीवन का अनुसरण करता है, उन सब को इसे ऐसे मानना चाहिए जैसे कि यह उनका अपना काम हो, और उनकी यह भावना होनी चाहिए कि वे परमेश्वर के बिना नहीं रह सकते, परमेश्वर के बिना एक भी सफलता नहीं है, और परमेश्वर के बिना सब शून्य है।

27.4.19

एक बहुत गंभीर समस्या: विश्वासघात (2)

मनुष्य का स्वभाव मेरे सार से पूर्णतः भिन्न है; ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य की भ्रष्ट प्रकृति पूरी तरह से शैतान से उत्पन्न होती है और मनुष्य की प्रकृति को शैतान द्वारा संसाधित और भ्रष्ट किया गया है। अर्थात्, मनुष्य अपनी बुराई और कुरूपता के प्रभाव के अधीन जीवित रहता है। मनुष्य सच्चाई या पवित्र वातावरण की दुनिया में बड़ा नहीं होता है, और इसके अलावा प्रकाश में नहीं रहता है। इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति के भीतर सत्य सहज रूप से निहित हो, यह संभव नहीं है, और इसके अलावा वे परमेश्वर के भय, परमेश्वर की आज्ञाकारिता के सार के साथ पैदा नहीं हो सकते हैं। इसके विपरीत, वे एक ऐसी प्रकृति से युक्त होते हैं जो परमेश्वर का विरोध करती है, परमेश्वर की अवज्ञा करती है, और जिसमें सच्चाई के लिए कोई प्यार नहीं होता है।

24.4.19

एक बहुत गंभीर समस्या: विश्वासघात (1)

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं: लेकिन इस बार, मैं तुम लोगों की जो सबसे गंभीर समस्या है, उसकी व्याख्या करने के लिए तथ्यों का उपयोग कर रहा हूँ, और वह है "विश्वासघात"।

एक बहुत गंभीर समस्या: विश्वासघात (1)


मेरा कार्य पूरा होने ही वाला है। कई वर्ष जो हमने एक साथ बिताए हैं वे अतीत की असहनीय यादें बन गए हैं। मैंने अपने वचनों को दोहराना जारी रखा है और अपने नये कार्य में प्रगति करने से मैं नहीं रुका हूँ। निस्संदेह, मैं जो कार्य करता हूँ उसके प्रत्येक अंश में मेरी सलाह एक आवश्यक घटक है। मेरी सलाह के बिना, तुम सभी लोग भटक जाओगे और यहाँ तक कि उलझन में पड़ जाओगे। मेरा कार्य अब समाप्त होने ही वाला है और अंत पर पहुँचने वाला है; मैं अभी भी सलाह प्रदान करने का कुछ कार्य करना चाहता हूँ, अर्थात्, तुम लोगों के सुनने के लिए कुछ सलाह के वचन प्रस्तुत करना चाहता हूँ।

2.2.19

विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए

वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? तुमने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण तुम कितने बदले हो? अब तुम सभी जानते हो कि परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह उसके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए, इत्यादि है।

27.12.18

प्रतिज्ञाएं उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं

वह क्या मार्ग है जिसके माध्यम से परमेश्वर लोगों को पूर्ण करता है? कौन-कौन से पहलू उसमें शामिल हैं? क्या तू परमेश्वर के द्वारा पूर्ण होना चाहता है? क्या तू परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना को ग्रहण करना चाहता है? तू इन प्रश्नों से क्या समझता है?

14.11.18

कार्य और प्रवेश (2)

कार्य और प्रवेश (2)

तुम लोगों का कार्य और प्रवेश काफ़ी ख़राब है; आदमी कार्य को महत्व नहीं देता है और प्रवेश के साथ तो और भी लापरवाह है। मनुष्य इन्हें उन सबकों के रूप में नहीं मानता है जिनसे उसे प्रवेश करना चाहिए; इसलिए, अपने आध्यात्मिक अनुभव में, यथार्थतः मनुष्य केवल सभी व्यक्ति ऊटपटांग भ्रमों को देखता है। कार्य में तुम लोगों के अनुभव के संदर्भ में तुम लोगों से बहुत ज्यादा नहीं कहा जाता है, किन्तु, परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने वाले एक व्यक्ति के रूप में, तुम लोगों को परमेश्वर के लिए कार्य करना सीखना चाहिए ताकि तुम लोग शीघ्र ही परमेश्वर की व्यक्तिगत पसंद के हो सको।

सत्तरवाँ कथन

सत्तरवाँ कथन

यह पूरी तरह से मेरे अनुग्रह और मेरी दया के माध्यम से ही है कि मेरा रहस्य प्रकट और खुले तौर पर व्यक्त होता है, अब और छुपा नहीं है। मेरे वचन का मनुष्यों के बीच प्रकट होना, अब इसका छुपा न होना, और भी अधिक मेरे अनुग्रह और मेरी दया के कारण है। मैं उन सभी से प्यार करता हूँ जो ईमानदारी से मेरे लिए खुद को व्यय करते हैं और खुद को मेरे प्रति समर्पित करते हैं।

23.8.18

केवल वह जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है वही परमेवर में सच में विश्वास करता है


केवल वह जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है वही परमेवर में सच में विश्वास करता है

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "यहोवा के कार्य के बाद, यीशु मनुष्यों के बीच में अपना कार्य करने के लिये देहधारी हो गया। उसका कार्य एकाकीपन में नहीं किया गया, बल्कि यहोवा के कार्य पर किया गया। यह नये युग के लिये एक कार्य था जब परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का समापन कर दिया था।

11.7.18

वे जो मसीह से असंगत हैं निश्चय ही परमेश्वर के विरोधी हैं

परमेश्वर को जानना-सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन-अंतिम दिनों के मसीह के कथन
वे जो मसीह से असंगत हैं निश्चय ही परमेश्वर के विरोधी हैं
सभी मनुष्य यीशु के सच्चे रूप को देखने और उसके साथ रहने की इच्छा करते हैं। मैं विश्वास करता हूँ कि भाईयों या बहनों में से एक भी ऐसा नहीं है जो कहेगा कि वह यीशु को देखने या उसके साथ रहने की इच्छा नहीं करता है। यीशु को देखने से पहले, अर्थात्, इस से पहले कि तुम लोग देहधारी परमेश्वर को देखो, तुम्हारे भीतर अनेक विचार होंगे, उदाहरण के लिए, यीशु के रूप के बारे में, उसके बोलने का तरीका, उसके जीवन का तरीका, और इत्यादि।

8.7.18

परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए लोगों के बीच महत्वपूर्ण अंतर"


परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए लोगों के बीच महत्वपूर्ण अंतर"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "जो कोई दिव्यता में कार्य करता है वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि जो मानवता के भीतर कार्य करते हैं वे परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए गए लोग हैं। अर्थात्, देहधारी परमेश्वर उन लोगों से मौलिक रूप से भिन्न है जो परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाते हैं।

4.7.18

परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-चमकती पूर्वी बिजली-सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है
पिछले दो युगों के कार्यों में से एक चरण का कार्य इस्राएल में सम्पन्न हुआ; दूसरा यहूदिया में हुआ। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य का कोई भी चरण इस्राएल को छोड़ कर नहीं गया; कार्य के ये वे चरण थे जो विशेष चुने हुए लोगों के मध्य में किये गए। इस प्रकार से, इस्राएलियों के दृष्टिकोण से, यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है।

18.6.18

परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, परमेश्वर को जानना, परमेश्वर, यीशु, मसीह

परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही 
परमेश्वर को जानने का मार्ग है

मानवजाति के प्रबंधन करने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, जिसका अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है। इन चरणों में संसार की रचना का कार्य समाविष्ट नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण हैं।

10.6.18

जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे


जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण एक समान हैं। जो केवल परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं लेकिन उसके कार्य के प्रति समर्पित नहीं होते हैं उन्हें आज्ञाकारी नहीं माना जा सकता है, और उन्हें तो बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता है जो सचमुच में समर्पण नहीं करते हैं, और बाहरी तौर पर वे चापलूस हैं।

7.6.18

The Word of the Holy Spirit | परमेश्वर के कथन "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" (Hindi)


The Word of the Holy Spirit | परमेश्वर के कथन "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" (Hindi)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "तुम लोग केवल स्वर्ग के अनदेखे परमेश्वर को चाहते हो और भय मानते हो और धरती पर जीते-जागते मसीह के लिए कोई सम्मान नहीं है। क्या यह भी तुम्हारा अविश्वास नहीं है? तुम सब केवल अतीत में कार्य करने वाले परमेश्वर के लिए लालायित रहते हो परन्तु आज के मसीह का सामना तक नहीं करते।

9.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "सर्वशक्तिमान का आह भरना” | God's waiting of love


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "सर्वशक्तिमान का आह भरना” | God's waiting of love

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मनुष्य, जिन्होंने सर्वशक्तिमान के जीवन की आपूर्ति को त्याग दिया, नहीं जानते हैं आखिर वे क्यों अस्तित्व में हैं, और फिर भी मृत्यु से डरते रहते हैं। इस दुनिया में, जहां कोई सहारा नहीं है, सहायता नहीं है, वहाँ बहादुरी के साथ, बिन आत्माओं की चेतना के शरीरों में एक अशोभनीय अस्तित्व को दिखाते हुए मनुष्य, अपनी आंखों को बंद करने में, अभी भी अनिच्छुक है। तुम इनके समान जीते हो, आशाहीन; उसका अस्तित्व इसी प्रकार का, बिना किसी लक्ष्य का है।

18.4.18

बुलाए हुए बहुत हैं, परन्तु चुने हुए कुछ ही हैं


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

बुलाए हुए बहुत हैं, परन्तु चुने हुए कुछ ही हैं
पृथ्वी पर मेरे अनुयायी होने के लिए मैंने कई लोगों को खोजा है। इन सभी अनुयायियों में, ऐसे लोग हैं जो याजकों की तरह सेवा करते हैं, जो अगुआई करते हैं, जो बेटों को आकार देते हैं, जो लोगों का गठन करते हैं और जो सेवा करते हैं। मैं उन्हें उस वफ़ादारी के अनुसार जो वे मेरे प्रति दिखाते हैं भिन्न-भिन्न श्रेणियों में विभाजित करता हूँ।

17.4.18

सर्वशक्तिमान का आह भरना

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

                     सर्वशक्तिमान का आह भरना



तुम्हारे हृदय में एक बहुत बड़ा रहस्य है। तुम कभी नहीं जान पाते कि वो वहाँ है क्योंकि तुम एक ऐसे संसार में जीवन बिता रहे हो जहां चमकती रोशनी नहीं है। तुम्हारा हृदय और तुम्हारी आत्मा दुष्ट शक्ति द्वारा दबोच ली गई है। तुम्हारी आंखों को अंधकार ने ढक लिया है, तुम सूर्य को आकाश में नहीं देख सकते, न ही रात में टिमटिमाते तारों को।

29.3.18

क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

परमेश्वर, मसीह, यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

यीशु के देहधारी होने के सत्य के विकसित होने के बाद ही मनुष्य इस बात को महसूस कर पाया: यह न केवल स्वर्ग का परमेश्वर है, बल्कि यह पुत्र भी है, और यहां तक कि वह आत्मा भी है। यह पारम्परिक धारणा है जिसे मनुष्य धारण किए हुए है, कि एक ऐसा परमेश्वर है जो स्वर्ग में हैः एक त्रित्व जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है, और ये सभी एक में हैं।

प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए एक अति महत्वपूर्ण कदम

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